सूरज से गुफ्तगू #40

तुजसे बार बार मोहब्बत हो रही हैकभी तेरी गुस्ताखियों सेतो कभी तू मुझे जैसे देखे, उस नज़र सेकभी तेरी मुस्कराहट सेतो कभी तू जैसे मेरे करीब आये, उन बाहो सेकभी तेरी अनकही बातो सेतो कभी तू रूठ जाये, उस अंदाज़ सेबस तुजसे बार बार मोहब्बत हो रही हैकभी तेरी हरकतों से, तो कभी, बेवजह सहीContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #40”

सूरज से गुफ्तगू #39

उसने कहा हम मिले नहींफिर जुदाई का गम कैसेउसे क्या पता, हम मिले नहींफिर भी मोहब्बत थी उससेपाया तो नहींपर अब तक ढूंढ रही हूँउस एक तिनके सी मुलाकातअब तक महसूस कर रही हूँबादलो और फूलो पर चल कर नहींकांटो और अंगारो से भी लड़ कर आयी हूँवो सारी पुरानी बातेंइन सन्नाटो में छुपा करContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #39”

सूरज से गुफ्तगू #38

आज जाते वक़्त बार बार पीछे मुड़ के देख रही थीकी शायद तुम्हारी एक जलक और दिख जायेवक़्त से बार बार मिन्नतें कर रही थीकी काश थोड़ा सा वक़्त और मिल जायेयु तो खफा थी मै तुजसेपर मोहब्बत-ऐ-वफ़ा का आलम कोई कैसे भूल जाये Read More: सूरज से गुफ्तगू #37

सूरज से गुफ्तगू #37

तुमसे ज्यादा आज कलवो उड़ते पंछी पसंद आते हैपर मुझे छोड़वो भी तुम्हारे पास चले आते हैकुछ तो होगा तुजमेजो किसी और में नहीं दीखताये सारा का सारा संसारक्यों तुजसे ही है खिलता Read More: सूरज से गुफ्तगू #36

सूरज से गुफ्तगू #36

ज़िम्मेदारियों का बोज नहींसिर्फ तेरे न होने का है,खुशियों की खोज नहींसिर्फ तेरे साथ का है. Read More: सूरज से गुफ्तगू #35

सूरज से गुफ्तगू #35

सब कुछ हो के अब कुछ नहीं रहाहमारे दरमियान अब कुछ न रहातू आना मुझसे मिलने अगर चाहे तोक्युकी मेरे पास अब तुजसे मिलने का कोई बहाना न रहा Read More: सूरज से गुफ्तगू #34

सूरज से गुफ्तगू #34

तू ख्वाब है मेरा पर पूरा नहींतू मेरा है पर मेरा नहींतू प्यार है मेरा पर अधूरा नहींतू सूरज है पर सवेरा क्यों नहीं Read More: सूरज से गुफ्तगू #33

सूरज से गुफ्तगू #33

तेरे कंधे पर सर रख कर रोना चाहती हूँतुजे बाहो में भर कर कुछ देर सोना चाहती हूँफिर जल के राख हो जाऊं तो भी कोई गम नहींबस तेरे सीने में भी खुद की पहचान छोड़ना चाहती हूँतेरी उंगलियों के बीच खुद की उंगलियां पिरोना चाहती हूँतेरे सपनो में मेरी जान, खुद के सपनो कोContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #33”

सूरज से गुफ्तगू #32

वो कहते है वक़्त बड़ा तेज़ हैंशायद उन्होंने कभी सारी रात उस चाँद को नहीं देखा हैंशायद उन्होंने अकेले में बिस्तर पर सिलवटों को नहीं सजाया हैंशायद, शायद उन्होंने उन तारो को तांकते हुए तुम्हारा इंतज़ार नहीं किया हैं Read More: सूरज से गुफ्तगू #31

सूरज से गुफ्तगू #31

सुन तू चला जामैं हक़ीक़त में जीना चाहती हूँख्वाब बहुत देख लिए मैंनेअब उन्हें जुड़ते देखना चाहती हूँउन्हें टूटने नहीं देना चाहती हूँसुन तू चला जामधुशाला में खोना नहीं चाहती हूँमें शायद बस कड़वे घूट ही पीना जानती हूँ #amorfati :Amor fati is a Latin phrase that may be translated as “love of fate” orContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #31”