सूरज से गुफ्तगू #50

न नगमे न सपनेन तेरा न मेराचल बीच राह ही कही मिलते हैजी जान से नहीं बस उन ढाई हर्फो को निभाते हैमुश्किल सही नामुमकिन तो नहींहसना और रोना भी पर तेरा साथ तो सहीअब कोई कहानी तेरी छुपी नहींमेरे पंख अब मोम के नहींन अब कोई इंतज़ार है, न सितारों को पाने की चाहतहैContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #50”

सूरज से गुफ्तगू #36

ज़िम्मेदारियों का बोज नहींसिर्फ तेरे न होने का है,खुशियों की खोज नहींसिर्फ तेरे साथ का है. Read More: सूरज से गुफ्तगू #35

सूरज से गुफ्तगू #25

खुदको समजा लिया हैतुझको मना लिया हैइकरस जितना ऊंचा नहीं उड़ेंगेहम दोनों जितना बटोर सके उसी में खुश हो लेंगेज्यादा ख्वाहिशे नहीं रखेंगेवरना शायद दो जिस्म एक जान जैसा कुछ खो देंग। Read More: सूरज से गुफ्तगू #24

सूरज से गुफ्तगू #24

मै कुछ देर का मेहमान हुतू जीता चला जायेगातूने ही कहा था, मै जरूरी हु सांस लेने के लिएफिर तू क्या करेगा, मेरे बाद मुझे पाने के लिए?चल, तुजे क्या करना है मै ही तुजे बता देती हूँतेरे हर हाल का पता मै ही लिख के लती हूँतू क्या मेरे लिए नग्मे लिखेगामेरी यादो सेContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #24”