दिखोगे या नहीं दिखोगेकब से खड़ी हु रास्ता देखेकुछ बोलोगे या नहीं बोलोगेतेरी कहानी को सुनने को कान है तरसेमेरी तरह दिलचस्प न सहीपर कहानी तो तेरी भी होगीमेरी तरह बेख़ौफ़ न सहीमोहब्बत तो तूने भी की होगीचल अब आ भी जाऐसे न सत्तामोहब्बत का इज़हार कर भी जाऐसे न मुझसे तू अपनी कहानी छुपाContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #41”
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सूरज से गुफ्तगू #40
तुजसे बार बार मोहब्बत हो रही हैकभी तेरी गुस्ताखियों सेतो कभी तू मुझे जैसे देखे, उस नज़र सेकभी तेरी मुस्कराहट सेतो कभी तू जैसे मेरे करीब आये, उन बाहो सेकभी तेरी अनकही बातो सेतो कभी तू रूठ जाये, उस अंदाज़ सेबस तुजसे बार बार मोहब्बत हो रही हैकभी तेरी हरकतों से, तो कभी, बेवजह सहीContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #40”
सूरज से गुफ्तगू #36
ज़िम्मेदारियों का बोज नहींसिर्फ तेरे न होने का है,खुशियों की खोज नहींसिर्फ तेरे साथ का है. Read More: सूरज से गुफ्तगू #35
सूरज से गुफ्तगू #34
तू ख्वाब है मेरा पर पूरा नहींतू मेरा है पर मेरा नहींतू प्यार है मेरा पर अधूरा नहींतू सूरज है पर सवेरा क्यों नहीं Read More: सूरज से गुफ्तगू #33
सूरज से गुफ्तगू #32
वो कहते है वक़्त बड़ा तेज़ हैंशायद उन्होंने कभी सारी रात उस चाँद को नहीं देखा हैंशायद उन्होंने अकेले में बिस्तर पर सिलवटों को नहीं सजाया हैंशायद, शायद उन्होंने उन तारो को तांकते हुए तुम्हारा इंतज़ार नहीं किया हैं Read More: सूरज से गुफ्तगू #31
सूरज से गुफ्तगू #31
सुन तू चला जामैं हक़ीक़त में जीना चाहती हूँख्वाब बहुत देख लिए मैंनेअब उन्हें जुड़ते देखना चाहती हूँउन्हें टूटने नहीं देना चाहती हूँसुन तू चला जामधुशाला में खोना नहीं चाहती हूँमें शायद बस कड़वे घूट ही पीना जानती हूँ #amorfati :Amor fati is a Latin phrase that may be translated as “love of fate” orContinue reading “सूरज से गुफ्तगू #31”
सूरज से गुफ्तगू #30
जो देखना चाहता है तो देख लेता हैवरना न जाने कहा छुप जाता हैमै इंतज़ार करती हूँ की तू अब आएगापर तुजे न जाने मुझे यु परेशां देख, क्या चैन आता है. Read More: सूरज से गुफ्तगू #29
सूरज से गुफ्तगू #28
बिन मांगी जलन हैएक तूफ़ान, एक सैलाब भी हैरोज तुजसे पूछना चाहती हु, पर भूल जाती हूँतू है तो सही पर इतना दूर दूर क्यों हैं Read More: सूरज से गुफ्तगू #27
सूरज से गुफ्तगू #22
पाना नहीं सिर्फ चाहना है तुजे कुछ ज्यादा नहीं सिर्फ सपनो में देख लेना तू मुझे, और कुछ नहीं तो बसा लेना तेरी हर रंगीन अंगड़ाई में फिर तू चाहे तो बस बन कर रह जाउंगी तेरी ही परछाई मै। Read more: सूरज से गुफ्तगू #21